श्लोक
करपूर गौरम करूणावतारम
संसार सारम भुजगेन्द्र हारम |
सदा वसंतम हृदयारविंदे
भवम भवानी सहितं नमामि ||
मंगलम भगवान् विष्णु
मंगलम गरुड़ध्वजः |
मंगलम पुन्डरी काक्षो
मंगलायतनो हरि ||
सर्व मंगल मांग्लयै
शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्रयम्बके गौरी
नारायणी नमोस्तुते ||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव
कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा
बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात
करोमि यध्य्त सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि ||
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव |
जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव
गोविन्द दामोदर माधवेती ||
हिन्दी अनुवाद:
शरीर कर्पूर के समान गोरा है, जो करुणा का प्रतिरूप है, जो शिव जगत के मूल हैं। और गले में महादेव सर्पराज की वरमाला धारण करने वाले सदा प्रसन्न रहने वाले भगवान शिव को मैं हृदय-कमल में शिव-पार्वती को एक साथ प्रणाम करता हूं।
इस मंत्र से भगवान शिव की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है-
कर्पूरगौरम – कपूर जैसे गोरे रंग वाले।
करुणावतारम – करुणा का अवतार।
संसारसाराम – संपूर्ण सृष्टि का सार।
भुजगेंद्रहारम – इसका अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करता है।
सदा वसंत हृदयविन्दे भवम्भवानि सहितं नमामि – इसका अर्थ है कि जो शिव और पार्वती के साथ मेरे हृदय में सदैव निवास करते हैं, उन्हें मैं प्रणाम करता हूं।
मंत्र का पूरा अर्थ
यह मंत्र भगवान शिव को श्रद्धांजलि है, ब्रह्मांड के शासक के रूप में उनकी निष्पक्षता, करुणा और शक्ति की प्रशंसा करता है। ऐसा कहा जाता है कि इसे विष्णु ने माता भवानी से शिव के विवाह के समय गाया था। मंत्र पहचानता है कि शिव के उग्र रूप के बावजूद, वह वास्तव में दिव्य हैं और उनसे भवानी के साथ हृदय में निवास करने के लिए कहते हैं। मंत्र का अर्थ मृत्यु के भय को दूर करना और शिव के आशीर्वाद को आमंत्रित करना है।